मेरा कंम्प्यूटर ऊबुन्टू लिनक्स के साथ
लिनक्स से मेरा पहला परिचय 1998 का है, तब मैं इंजीनियरिंग का छात्र था। मैंने अपने हाथ से जोड़कर कंम्प्यूटर बनाया था अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए। सारे पुर्जे जोड़ने के बाद कंम्प्यूटर तो बन गया फिर समस्या थी उस पर साफ्चवेयर चलाने की। मुंबई के फोर्ट इलाके से खरीदी Windows 98 की सीडी से जब कंम्प्यूटर शुरू करना चाहा तो पता चला कि सीडी Bootable नहीं है। सीडी बेचने वाले की धोखाधड़ी को जानकर माथा पकड़ लिया। फोर्ट इलाका मेरे घर से काफी दूर भी तो था। पूरा दिन लग जाता वापस जाकर सीडी बदलने में।
खैर, भाग्य में कुछ और लिखा था।
लिनक्स से मेरी मुलाकात हुई रेलवे स्टेशन के बुकस्टाल पर। PCQuest पत्रिका के संस्करण के साथ Redhat Linux 5.2 की सीडी मिल रही थी 100/- रुपए में। मेरी जेब के लिए यह खर्च भारी था और मैं सोच में पड़ गया था। मेरी मितव्ययता, विवेक और पत्रिका के कवर पर उपलब्ध सीमित जानकारी - इन तीनों के बीच संघर्ष शुरु हो गया।
'एक रुका हुआ फैसला' ही बन जाता लेकिन मेरे गंतव्य की लोकल आ गयी और मैंने दुकानदार को सौ का नोट पकड़ा दिया। फिर तो ट्रेन का सफर पन्ने पलट कर यह तय करने में बीत गया, कि मैंने गलत निर्णय नहीं लिया है और यह सीडी ठीक ठाक है और Bootable भी है। पत्रिका में कुछ चित्र भी थे जिन्हे देख कर लगा कि GUI और ध्वनि (audio) भी चल जाएगा।
कुछ दिनों की मेहनत और तुक्केबाजी (Trial and error) से मेरे कंम्प्यूटर पर लिनक्स चल पड़ा।
फिर तो Linux kernel, gcc compiler और अन्य मुक्तस्रोत साफ्टवेयर के साथ मेरी जान पहचान बढ़ती गई। आज हालत यह है कि मैं आफिस में दिनभर इन्हीं का प्रयोग करता हूँ।
ऐसा नहीं कि यह सफर आसान था। इसमें कई उतार चढ़ाव आए। पता चला कि मेरा sound card, CD writer लिनक्स में काम नहीं करते। और कई गेम्स भी नहीं चलती। थक हार कर Windows भी डाल लेता था, Dual-boot बना कर काम करता था। हाँ, लिनक्स से जुड़ा अवश्य रहा।
अब वह हाथ से बनाया कंम्प्यूटर एक पुराने बक्से में पड़ा है और दो नये लेपटाप का प्रयोग करता हूँ। 2007 में मैंने Windows XP Home का 3500/- का लाइसेंस भी खरीदा, एक लेपटाप के लिए।
फिर 2008 में ऊबुन्टू लिनक्स 8.04 को ट्राई किया और आश्चर्य अब sound card और DVD-writer भी काम करने लगे। अब मेरे दोनों लेपटाप पर ऊबुन्टू है और मेरी दोस्ती गाढ़ी हो गई है।
अब देख रहा हूँ कि HCL और Dell ने ऊबुन्टू लिनक्स के साथ भारत में कंम्प्यूटर बेचना शुरू कर दिया है। अब तो मैं इसका परिचितों में प्रचार भी करता हूँ।
कुछ दिन पहले कुछ वयस्क लोगों को कंम्प्यूटर सिखाने का मौका मिला और हैरान रह गया कि ऊबुन्टू, ओपनआफिस और फायरफाक्स को सीखना कितना आसान हो गया है।
मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि आम भारतीय के लिए ईमानदारी से साफ्टवेयर करने का आसान तरीका उपलब्ध हो ही गया।
एक विचार : कभी कभी सोचता हूँ कि लिनक्स में Virus क्यों नहीं लिखे जाते ?
यहाँ मुक्त स्रोत रहने की वजह से Programmers को हाथ की खुजली मिटाने के पर्याप्त मौके जो मिल जाते हैं :-)
क्या आप को भी ऐसा लगता हैं ?
खैर, भाग्य में कुछ और लिखा था।
लिनक्स से मेरी मुलाकात हुई रेलवे स्टेशन के बुकस्टाल पर। PCQuest पत्रिका के संस्करण के साथ Redhat Linux 5.2 की सीडी मिल रही थी 100/- रुपए में। मेरी जेब के लिए यह खर्च भारी था और मैं सोच में पड़ गया था। मेरी मितव्ययता, विवेक और पत्रिका के कवर पर उपलब्ध सीमित जानकारी - इन तीनों के बीच संघर्ष शुरु हो गया।
'एक रुका हुआ फैसला' ही बन जाता लेकिन मेरे गंतव्य की लोकल आ गयी और मैंने दुकानदार को सौ का नोट पकड़ा दिया। फिर तो ट्रेन का सफर पन्ने पलट कर यह तय करने में बीत गया, कि मैंने गलत निर्णय नहीं लिया है और यह सीडी ठीक ठाक है और Bootable भी है। पत्रिका में कुछ चित्र भी थे जिन्हे देख कर लगा कि GUI और ध्वनि (audio) भी चल जाएगा।
कुछ दिनों की मेहनत और तुक्केबाजी (Trial and error) से मेरे कंम्प्यूटर पर लिनक्स चल पड़ा।
फिर तो Linux kernel, gcc compiler और अन्य मुक्तस्रोत साफ्टवेयर के साथ मेरी जान पहचान बढ़ती गई। आज हालत यह है कि मैं आफिस में दिनभर इन्हीं का प्रयोग करता हूँ।
ऐसा नहीं कि यह सफर आसान था। इसमें कई उतार चढ़ाव आए। पता चला कि मेरा sound card, CD writer लिनक्स में काम नहीं करते। और कई गेम्स भी नहीं चलती। थक हार कर Windows भी डाल लेता था, Dual-boot बना कर काम करता था। हाँ, लिनक्स से जुड़ा अवश्य रहा।
अब वह हाथ से बनाया कंम्प्यूटर एक पुराने बक्से में पड़ा है और दो नये लेपटाप का प्रयोग करता हूँ। 2007 में मैंने Windows XP Home का 3500/- का लाइसेंस भी खरीदा, एक लेपटाप के लिए।
फिर 2008 में ऊबुन्टू लिनक्स 8.04 को ट्राई किया और आश्चर्य अब sound card और DVD-writer भी काम करने लगे। अब मेरे दोनों लेपटाप पर ऊबुन्टू है और मेरी दोस्ती गाढ़ी हो गई है।
अब देख रहा हूँ कि HCL और Dell ने ऊबुन्टू लिनक्स के साथ भारत में कंम्प्यूटर बेचना शुरू कर दिया है। अब तो मैं इसका परिचितों में प्रचार भी करता हूँ।
कुछ दिन पहले कुछ वयस्क लोगों को कंम्प्यूटर सिखाने का मौका मिला और हैरान रह गया कि ऊबुन्टू, ओपनआफिस और फायरफाक्स को सीखना कितना आसान हो गया है।
मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि आम भारतीय के लिए ईमानदारी से साफ्टवेयर करने का आसान तरीका उपलब्ध हो ही गया।
एक विचार : कभी कभी सोचता हूँ कि लिनक्स में Virus क्यों नहीं लिखे जाते ?
यहाँ मुक्त स्रोत रहने की वजह से Programmers को हाथ की खुजली मिटाने के पर्याप्त मौके जो मिल जाते हैं :-)
क्या आप को भी ऐसा लगता हैं ?
Comments
Hopefully this story will be same for every student or professional[in INDIA] who eventually developed luv for LINUX and it matches mine as well :-)
that's my musing over how I felt in front of each OS.
I used one software on lingot (used for guitar tuning). I liked its usage and interface. Its free source. It uses Western music notations and I was so tempted to customize it to Indian classical notations.
And yes !!! It was nice experience to be see notes appearing in Hindi/Devanagari alphabelts :)
Suresh
good to know that your start and current journey had been similar.
For future generations (I am 30+ now) it will be more fun and interesting with ubuntu and fedora improving with every version in usability and HW support.
Also internet penetration is rising in India, so numbers of open-source contributors should be rising.
Suresh